ज़ख़्म की दास्ताँ
जब हमारे ज़ख़्म एक से हों और हमारे दर्द की दास्तानें भी तो मरहम लगाने में इतनी झिझक सी क्यों उठती है ज़ेहन में ? इस कविता को सुनने के बाद खुद से ये सव...
जब हमारे ज़ख़्म एक से हों और हमारे दर्द की दास्तानें भी तो मरहम लगाने में इतनी झिझक सी क्यों उठती है ज़ेहन में ? इस कविता को सुनने के बाद खुद से ये सव...
इश्क़ की कोई परिभाषा नहीं होती, और ज़रूरी तो नहीं जो इश्क़ मुक्कमल न हुआ हो वो इश्क़ नहीं ? इस कविता में दो परदेसियों के इश्क़ की दास्ताँ मौजूद है जो अप...
कुछ इमारतें जो बंज़र हो जाया करती हैं ज़रूरी नहीं की उनकी कहानियां भी बंज़र हो |
इस ज़िन्दगी की भाग दौड़ में दिल की बस एक ही आरज़ू होती है फुरसत के दिन जो इस कविता के द्वारा उल्लेखित की गई है |