कबीर वाणी
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कबीर दास बेहद ज्ञानी थे और स्कूली शिक्षा ना प्राप्त करते हुए भी उनके पास भोजपुरी, हिंदी, अवधी जैसी अलग-अलग भाषाओं में उनकी अच्छी पकड़ थी। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना भी की... साथ ही उन्होंने जो अपने आगे पीछे चलता देखा वहीं लिख दिया. इस शो में हम आपको सुनाएंगे कबीर के दोहे और उनके अर्थ...

कबीर वाणीः तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय

तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय । सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए ।  लोग रोजाना अपने शरीर को साफ़ करते हैं लेकिन मन को कोई साफ़ नहीं करता। जो इंसान...
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कबीर वाणी: जहां आपा तहां आपदा, जहां संशय तहां रोग

जहां आपा तहां आपदा, जहां संशय तहां रोग । कह कबीर यह क्यों मिटे, चारों धीरज रोग ॥ जहां मनुष्य में घमंड हो जाता है उस पर आपत्तियां आने लगती हैं और जहां ...
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कबीर वाणीः लाडू लावन लापसी ,पूजा चढ़े अपार

लाडू लावन लापसी ,पूजा चढ़े अपार पूजी पुजारी ले गया,मूरत के मुह छार  कबीर साहेब ने सदियों पहले दुनिया के इस सबसे बड़े घोटाले के बारे में बताया था कि आप...
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कबीर वाणीः मांगन मरण समान है, मति मांगो कोई भीख

मांगन मरण समान है, मति मांगो कोई भीख । मांगन ते मरना भला, यही सतगुरु की सीख ॥ मांगना मरने के बराबर है इसलिए किसी से भीख मत मांगो । सतगुरु की यही शिक्ष...
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Kabir Vani : प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए

प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए । राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए ।  कबीर दास जी कहते हैं कि प्रेम कहीं खेतों में नहीं उगता और नाही प्रेम...
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कबीर वाणीः जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाही

 जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाही सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही । कबीर दास जी कहते हैं कि जब मेरे अंदर अहंकार था, तब मेरे ह्रदय में हरी...
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कबीर वाणीः धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय । माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय ॥ हे मन ! धीरे-धीरे सब कुछ हो जाएगा। माली सैंकड़ों घड़े पानी पेड़ में देता है परंतु ...
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कबीर वाणीः हाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए

हाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए । मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए । भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि आप कितना भी नहा धो लीजिए, लेकिन अगर मन साफ़...
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कबीर वाणी: कबीरा ते नर अन्ध हैं, गुरु को कहते और

कबीरा ते नर अन्ध हैं, गुरु को कहते और । हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥ कबीरदास जी कहते हैं की वो नर अंधे हैं जो गुरु को भगवान से छोटा मानत...
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कबीर वाणीः मलिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार

मलिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार । फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार । मालिन को आते देखकर बगीचे की कलियाँ आपस में बातें करती हैं कि आज मालिन ने फूलों क...
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