Jab Shabd Daraaye by Karishma Agarwal
Share:

Listens: 11

About

मैंने इस किताब को लिखने से पहले बहुत बड़ा सपना देखा था कि मैं इस किताब को ऐसा लिखूँगी। जिससे पढ़ने वाला इन शब्दों मे डर का अनुभव कर सके। मेरा सोचना था कि जैसे एक पिक्चर को जब 3D का लुक दिया जाता हैं इसलिए कि उसे देखकर एहसास किया जाये और कुछ हद तक वो सच भी लगे। मैं कहानियों को डर के एहसास मे भर देना चाहती थी। मेरा मानना था कि इन कहानियों में इतना डर होना चाहिए कि इन कहानियों के टाइटल को पढ़कर डर खुद-ब-खुद पैदा होने लगे। जब हम हकीकत में हो तो वो शब्द डर के साथ मंडराने लगे। हम हमारी जिंदगी में बहुत सारी चीजों, शब्दों के बीच में हैं। मैंने उन्हीं सबको सोचते हुए इसे लिखने का सोचा था। निजी जिंदगी में होने वाली चीजें हमे कैसे डरा सकती हैं। ये इस किताब को पढ़ने पर ही पता किया जा सकता हैं। कुछ उसी तरह मैंने इस किताब को लिखने का सोचा था। लेकिन मैं नहीं कर पायी। क्यूंकि मैंने इस किताब को मेरी बेटी के जन्म के पहले लिखा था। और उसके होने के बाद कुछ परिस्थितियां ऐसी बनी की मेरी मानसिक स्थिति बहुत खराब हो गई। मैं इसे वैसा नहीं बना पायी। जैसा मैं चाहती थी। मैंने इसे पब्लिशर से ही एडिट करवाने का निर्णय लिया। क्यूंकि मैं खुद को आगे बढ़ते हुए देखना चाहती थी। मैं खुश होना चाहती थी। अधूरे छोड़े सपनों को फिर से पकड़ लेना चाहती थी। 

Jab Shabd Darayen by Karishma Agarwal

मैंने इस किताब को लिखने से पहले बहुत बड़ा सपना देखा था कि मैं इस किताब को ऐसा लिखूँगी। जिससे पढ़ने वाला इन शब्दों मे डर का अनुभव कर सके। मेरा सोचन...

Show notes