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अमन हर रोज़ वही कॉफ़ी शॉप में बैठता था।
जहाँ कभी रिया ने उसका हाथ पकड़ कर कहा था,
"हमेशा साथ रहेंगे, चाहे कुछ भी हो।"
आज उसकी जगह कोई और था।
रिया, उसी हंसी के साथ, किसी और के सामने बैठी थी।
अमन ने बस एक नज़र डाली…
और समझ गया कि उसके लिए "हमेशा" बस कुछ महीनों का था।
कप में बची ठंडी कॉफ़ी की तरह,
उसका दिल भी अब बेमायने हो चुका था।
वो उठा, बिना कुछ कहे,
और समझ गया—कभी-कभी वादे भी बस धोखे की एक और शक्ल होते हैं।