Society & Culture
OPD में आई कविता अपने भीतर एक नन्ही जान की उम्मीद लेकर आई थी — दो हल्की लकीरों ने उसे मां बना दिया था, और शायद किसी और के लिए त्याग की देवी भी। पर अल्ट्रासाउंड की स्क्रीन ने उसकी उम्मीदें चुपचाप मिटा दीं। कुछ दिन बाद आई सुनिता — पेट में धड़कता जीवन, पर आंखों में खालीपन। दोनों औरतें अलग थीं, पर उनकी कहानियाँ एक जैसी थीं: अपने शरीर, अपनी मर्ज़ी, और अपने बच्चे पर भी हक़ नहीं। पंजाब के गांवों में फैली ‘घरेलू सरोगेसी’ की ये चुपचाप चलती परंपरा क्या त्याग है… या सिर्फ़ एक और औरत की मजबूरी?