man mar liya

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Krishna Bhajan

Society & Culture


मैं तो उन संतन का दास जिन्होंने मन मार लिया

मन मारा तन बस करा रे हुवा भरम सब दूर

बाहर तो कछु दीखत नाहीं अन्दर चमके नूर

काम क्रोध मद लोभ मार के मिटी जगत की आस

बलिहारी उन संत की रे प्रकट करा है प्रकास

आपो त्याग जगत में बैठे नहीं किसी से काम

उनमें तो कछु अंतर नाही संत कहो चाहे राम

नरसीजी के सतगरू स्वामी दिया अमीरस पाय

एक बूंद सागर में मिल गयी क्या तो करेगा जमराज