Society & Culture
मैं तो उन संतन का दास जिन्होंने मन मार लिया
मन मारा तन बस करा रे हुवा भरम सब दूर
बाहर तो कछु दीखत नाहीं अन्दर चमके नूर
काम क्रोध मद लोभ मार के मिटी जगत की आस
बलिहारी उन संत की रे प्रकट करा है प्रकास
आपो त्याग जगत में बैठे नहीं किसी से काम
उनमें तो कछु अंतर नाही संत कहो चाहे राम
नरसीजी के सतगरू स्वामी दिया अमीरस पाय
एक बूंद सागर में मिल गयी क्या तो करेगा जमराज