सब कुछ वही था. वही सड़क के दाहिने बाज़ू उगा हरसिंगार और उसकी सरसराहट, वही गुलवश सुबह, वही पेड़,पहाड़,हरियाली और ताल तलैय्यों की मदमाती ठंडक. बस कुछ नहीं था तो एक एहसा,किसी की हथेलियों में मसले हरसिंगार की महक का एहसास...
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सब कुछ वही था. वही सड़क के दाहिने बाज़ू उगा हरसिंगार और उसकी सरसराहट, वही गुलवश सुबह, वही पेड़,पहाड़,हरियाली और ताल तलैय्यों की मदमाती ठंडक. बस कुछ नहीं था तो एक एहसा,किसी की हथेलियों में मसले हरसिंगार की महक का एहसास...