Society & Culture
• अपने भीतर कहीं बाहर से धर्म लाने की प्रक्रिया नहीं करनी बल्कि हमारे भीतर जो विकृतियाँ हैं उनको हटाना है। जैसे-जैसे हम उनको हटाते जायेंगे धर्म आपो-आप हमारे भीतर प्रकट होता जायगा।
• जो जितना सामर्थ्यवान होगा वह उतना क्षमावान भी होगा। जो जितना क्रोध करेगा वह उतना ही कमज़ोर होगा।
• क्रोध न आवे वास्तव में तो क्षमा ये ही है। क्रोध आ जाने के बाद कौन कितनी जल्दी उसे समाप्त कर देता है यह उसकी अपनी क्षमता है। जो जितना सामर्थ्यवान होगा वह उतना ही क्षमावान होता है।
• क्रोध के कारण, और क्रोध आने पर हम क्या करें परमपूज्य मुनिश्री क्षमासागर जी अपनी सुमधुर वाणी से हमें समाधान दे रहें हैं ।