Bhagavad Gita 5.26

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Bhagavad Gita (Hindi)

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Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 26


अध्याय 5 : कर्मयोग - कृष्णभावनाभावित कर्म


श्लोक 5 . 26


कामक्रोधविमुक्तानां यतीनां यतचेतसाम् |

अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम् || २६ ||


काम – इच्छाओं; क्रोध – तथा क्रोध से; विमुक्तानाम् – मुक्त पुरुषों की; यतीनाम् – साधु पुरुषों की; यत-चेतसाम् – मन के ऊपर संयम रखने वालों की; अभितः – निकट भविष्य में आश्र्वस्त; ब्रह्म-निर्वाणम् – ब्रह्म में मुक्ति; वर्तते – होती है; विदित-आत्मानम् – स्वरुपसिद्धों की |


भावार्थ


जो क्रोध तथा समस्त भौतिक इच्छाओं से रहित हैं, जो स्वरुपसिद्ध, आत्मसंयमी हैं और संसिद्धि के लिए निरन्तर प्रयास करते हैं उनकी मुक्ति निकट भविष्य में सुनिश्चित है |