औपचारिक रहा ना वो कल चाहिए था

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अल्हड बनारसी

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(अल्लहड़ बनारसी और रमती बंजारन) जिसके (लेखक शरद दुबे) और (वक्ता RJ रविंद्र सिंह) है  !

औपचारिक रहा ना वो कल चाहिए था 

सफर के लिए हम सफर चाहिए था 

चले संग हमारे वो मन चाहिए था 

रहीं जो खुशी वो हर पल चाहिए था 

कुछ सोचा जो पल चाहिए था 

औपचारिक रहा ना वो कल चाहिए था 

सफर के लिए हम सफर चाहिए था 

 चले जो सफर में वो हम सफर चाहिए था 

रहे संग जो साथी वो पल चाहिए था 

गुज़रा जो बचपन वो कल चाहिए था 

बीते लम्हों के बचपन का कल चाहिए था 

औपचारिक रहा ना वो कल चाहिए था 

सफर के लिए हम सफर चाहिए था