आख़िरी ख़त

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कविता

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रवि हर शाम उस पुराने पार्क में आता था, वही बेंच, वही पेड़।

तीन साल पहले यहीं उसने स्नेहा को आख़िरी बार देखा था।

वो चली गई, बिना कुछ कहे — सिर्फ़ एक चिट्ठी छोड़ गई थी।

आज फिर उसने वही चिट्ठी खोली।

लिखा था:

"अगर कभी मैं तुम्हें छोड़ जाऊँ, तो समझ लेना कि मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ,

इतना कि तुम्हें दुखी होते नहीं देख सकती।"

रवि मुस्कुराया, आसमान की ओर देखा और फुसफुसाया —

"मैं अब भी तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ, स्नेहा।"

उसकी आँख से एक बूँद गिरी,

और बेंच पर रखा ख़त फिर से थोड़ा गीला हो गया।