किस्सा 67 - जब ठेठ ग्रामीण जनजीवन देखकर मंत्रमुग्ध हुए ‘डॉ. कलाम’

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किस्सा 67 - जब ठेठ ग्रामीण जनजीवन देखकर मंत्रमुग्ध हुए ‘डॉ. कलाम’